shivaholic
keep calm and love shiva
6 Mar 2017
24 Nov 2016
letter to bholenath
Dear lord from the deep of my heart never leave your sight from this die hard devotee off yours .
though its hard to believe for the people out their in the world but you had shown me your presence so many times. no matter how bad or good they were but those were the best moments that i felt as if you were standing nearby me the whole time. though the whole world isnt with me except my family but dear lord you are there. no matter how much depressed i got you always created a way to make your this son happy. i wont nothing but your blessings the whole life . no matter what i had to do to make you proud in any manner.
cant thank you na cause you do not need these lame things .
26 Oct 2016
eknath bholenath
16 Oct 2016
Tandav mantra
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||
लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः |
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||
पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||
2 Oct 2016
Bholenath
When you are lost and when you are too much depressed and you are too much tired off hearing people mentioning you as a bad guy or they don't know your value. Cause people in today's world judge you by your money looks or total expenditure that you spend on the guys. Then just do one thing don't care how much they criticize you just ignore them and remember bholenath cause he is the ultimate doctor for all your remedies.funny incident recalled. Guys who smoke weed and hash they keep on mentioning one thing that bro it will take you to bholenath directly but they don't know that how much they smoke they can't become bholenath cause baba used to smoke dhatura ultimate drug and the neelkhanth incident. They show that they can drink as much as they want but they don't have the capacity to smoke dhatura. Bhai agar nashe se hi bholenath milte to Ravan ko Bhakti ki kya jarurat thi. So I just wanna say that be calm and peaceful and just recall baba all time cause bholenath says that my kids no matter how much difficult situation you face just remember I am always there for you. Just keep on doing your things and don't worry about your fruits that you receive after your work. Be non greedful don't indulge yourself in bad activities indulge yourself in your work and be busy why too care for the guys who don't care about you bholenath is there always. Ultimate superior of all the lords that's why lord Vishnu and all other lords praise bholenath but bholenath doesn't praise anyone cause for him all are equal. Be like Ravana. Be unique devote yourself to bholenath rest bholenath will see and clear all your hurdles.
30 Sept 2016
shiv vivah
23 Sept 2016
Mahakal ka saar
देवों के देव कहते हैं, इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है।भारतीय धर्म के प्रमुख देवता हैं। ब्रह्मा और विष्णु के त्रिवर्ग में उनकी गणना होती है। पूजा, उपासना में शिव और उनकी शक्ति की ही प्रमुखता है। उन्हें सरलता की मूर्ति माना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम से उनके विशालकाय तीर्थ स्वरूप देवालय भी हैं। साथ ही यह भी होता है कि खेत की मेंड़ पर किसी वृक्ष की छाया में छोटी चबूतरी बनाकर गोल पत्थर की उनकी प्रतिमा बना ली जाए। पूजा के लिए एक लोटा जल चढ़ा देना पर्याप्त है। संभव हो तो बेलपत्र भी चढ़ाए जा सकते है। फलों की अपेक्षा वे नहीं करते। न धूप दीप, नैवेद्य, चन्दन, पुष्प जैसे उपचार अलंकारों के प्रति उनका आकर्षण है।
शिव ने ही कहा था कि 'कल्पना' ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया।
इस सृष्टि के प्राणी और सभी पदार्थ तीन स्थितियों में होकर गुजरते हैं-एक उत्पादन, दूसरा अभिवर्द्धन और तीसरा परिवर्तन है। सृष्टि की उत्पादक प्रक्रिया को ब्रह्मा, अभिवर्द्धन को विष्णु और परिवर्तन को शिव कहते हैं। मरण के साथ जन्म का यहाँ अनवरत क्रम है। बीज गलता है तो नया पौधा पैदा होता है। गोबर सड़ता है तो उसका खाद पौधों की बढ़ोत्तरी में असाधारण रूप से सहायक होता है। पुराना कपड़ा छोटा पड़ने या फटने पर उसे गलाया और कागज बनाया जाता है। नए वस्त्र की तत्काल व्यवस्था होती है। इसी उपक्रम को शिव कहा जा सकता है। वह शरीरगत अगणित जीव कोशाओं के मरते-जन्मते रहने से भी देखा जाता है और सृष्टि के जरा-जीर्ण होने पर महाप्रलय के रूप में भी। स्थिरता तो जड़ता है। शिव को निष्क्रियता नहीं सुहाती। गतिशीलता ही उन्हें अभीष्ट है। गति के साथ परिवर्तन अनिवार्य है। शिवतत्त्व को सृष्टि की अनवरत परिवर्तन प्रक्रिया में झाँकते देखा जा सकता है। भारतीय तत्त्वज्ञान के अध्यवसायी कलाकार और कल्पना भाव-संवेदना के धनी भी रहे हैं। उन्होंने प्रवृत्तियों को मानुषी काया का स्वरूप दिया है। विद्या को सरस्वती, संपदा को लक्ष्मी एवं पराक्रम को दुर्गा का रूप दिया है। इसी प्रकार अनेकानेक तत्त्व और तथ्य देवी-देवताओं के नाम से किन्हीं कायकलेवरों में प्रतिष्ठित किए गए हैं। तत्त्वज्ञानियों के अनुसार देवता एक से बहुत बने हैं। समुह का जल एक होते हुए भी उसकी लहरें ऊँची-नीची भी दीखती हैं और विभिन्न आकार-प्रकार की भी। परब्रह्म एक है तो भी उसके अंग-अवयवों को तरह देववर्ग की मान्यता आवश्यक जान पड़ी। इसी आलंकारिक संरचना में शिव को की मूर्द्धन्य स्थान मिला।
वे प्रकृतिक्रम के साथ गुँथकर पतझड़ के पीले पत्तों को गिराते तथा बसंत के पल्लव और फूल खिलाते रहते हैं। उन्हें श्मशानवासी कहा जाता है। मरण भयावह नहीं है और न उसमें अशुचिता है। गंदगी जो सड़न से फैलती है। काया की विधिवत् अंत्येष्टि कर दी गई तो सड़न का प्रश्न ही नहीं रहा। हर व्यक्ति को मरण के रूप में शिवसत्ता का ज्ञान बना रहे, इसलिए उन्होंने अपना डेरा श्मशान में डाला है। वहीं बिखरी भस्म को शरीर पर मल लेते हैं, ताकि ऋतु प्रभावों का असर न पड़े। मृत्यु को जो भी जीवन के साथ गुँथा हुआ देखता है उस पर न आक्रोश के आतप का आक्रमण होता है और न भीरुता के शीत का। वह निर्विकल्प निर्भय बना रहता है। वे बाघ का चर्म धारण करते है। जीवन में ऐसे ही साहस और पौरुष की आवश्यकता है जिसमें बाघ जैसे अनर्थों और अनिष्टों की चमड़ी उधेड़ी जा सके और उसे कमर से कसकर बाँधा जा सके। शिव जब उल्लास विभोर होते हैं तो मुंडों की माला गले में धारण करते हैं। यह जीवन की अंतिम परिणति और सौगात है जिसे राजा व रंक समानता से छोड़ते हैं। न प्रबुद्ध ऊँचा रहता है और न अनपढ़ नीचा। सभी एकसूत्र में पिरो दिए जाते हैं। यही समत्व रोग है, विषमता यहाँ नहीं फटकती।
शिव की नीलकंठ भी कहते हैं। कथा है कि समुद्र मंथन में जब सर्वप्रथम अहंता की वारुणी और दर्प का विष निकला तो शिव ने उस हलाहल को अपने गले में धारण कर लिया, न उगला और न पीया। उगलते तो वातावरण में विषाक्तता फैलती, पीने पर पेट में कोलाहल मचता। मध्यवर्ती नीति यही अपनाई गई। शिक्षा यह है कि विषाक्तता को न तो आत्मसात् करें, न ही विक्षोभ उत्पन्न कर उसे उगलें। उसे कंठ तक ही प्रतिबंधित रखे।
इसका तात्पर्य योगसिद्धि से भी है। योगी पुरुष अपने सूक्ष्मशरीर पर अधिकार पा लेते हैं जिससे उनके स्थूलशरीर पर तीक्ष्ण विषों का भी प्रभाव नहीं होता। उन्हें भी वह सामान्य मानकर पचा लेता है। इसका अर्थ यह भी है कि संसार में अपमान,कटुता आदि दुःख-कष्टों का उस पर कोई प्रभाव नहीं होता।